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About Us

#1 वैदिक पद्धति 77 वर्षों का अनुभव

हमारा उद्देश्य विश्व जन नेत्र कल्याण हेतु कम मूल्य पर आँखों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता युक्त नेत्र औषधि प्रदान करना तथा यह नेत्र औषधि भारत ही नहीं विश्व के हर कोने तक पहुचाना तथा लोगों को लाभान्वित करना हमारा उद्देश्य है। भारत ही नहीं पूरी दुनिया में नेत्र चिकित्सा की ऐसी वैदिक पद्धति नहीं बची है इसकी सुरक्षा करना तथा इसे बचाये रखना व् जन-जन तक पहुचाना सरकार का कर्तव्य है। भीमसेनी कार्यालय की स्थापना सन् 1947 में स्वर्गीय कतवारू मौर्य ने देश की जनता की आँखों की पूरी देखभाल एवं नेत्र रोगों से उत्पन्न अंधता से मुक्ति हेतु की, उसके पहले कई वर्षो तक तत्कालीन समय के जाने माने व्याकरणाचार्य स्वर्गीय पंडित सत्यनारायण शास्त्री जी, उनके आयुर्वेदिक गुरु स्वर्गीय वैध धरमदास जी, मूर्धन्य भैषज कल्पक ,स्वर्गीय पंडित कलाधर प्रसाद जी एवं आयुर्वेदिक चक्रवर्ती स्वर्गीय तारकशंकर मिश्र आयुर्वेद विशेषज्ञ के निर्देशन में नेत्र के भौतिक संगठन (दोष,धातु एवं मलो) एवं उनकी मात्राओं का गहन छानबीन व् नेत्र रोगों पर प्रयोग के आधार पर हमारी संस्था ने निर्माण तकनीकी ज्ञान का अर्जन किया।

इसका रजिस्ट्रेशन जब केंद्र सरकार ने आयुर्वेद पर ड्रग एक्ट लागू किया इसके पश्चात लाइसेंस हेतु संस्था ने आवेदन किया, विभिन्न क्लिनीकली परीक्षणो के उपरांत नेत्र रोगों पर प्रभावी गुणवात्ता के कारण 1986 में ड्रग लाइसेंस A1261/86 आयुर्वेदिक यूनानी निर्देशालय लखनऊ ने औषधि निर्माण लाइसेंस जारी किया।

वैद्यशिरोमणि स्वर्गीय कतवारू मौर्य
संस्थापक - भीमसेनी कार्यालय
Why Choose Us

Why People Trust Us? भीमसेनी कार्यालय का इतिहास

भीमसेनी कार्यालय की स्थापना सन् 1947 में स्वर्गीय कतवारू मौर्य ने देश की जनता की आँखों की पूरी देखभाल एवं नेत्र रोगों से उत्पन्न अंधता से मुक्ति हेतु की, उसके पहले कई वर्षो तक तत्कालीन समय के जाने माने व्याकरणाचार्य स्वर्गीय पंडित सत्यनारायण शास्त्री जी, उनके आयुर्वेदिक गुरु स्वर्गीय वैध धरमदास जी, मूर्धन्य भैषज कल्पक ,स्वर्गीय पंडित कलाधर प्रसाद जी एवं आयुर्वेदिक चक्रवर्ती स्वर्गीय तारकशंकर मिश्र आयुर्वेद विशेषज्ञ के निर्देशन में नेत्र के भौतिक संगठन (दोष,धातु एवं मलो) एवं उनकी मात्राओं का गहन छानबीन व् नेत्र रोगों पर प्रयोग के आधार पर हमारी संस्था ने निर्माण तकनीकी ज्ञान का अर्जन किया।

इसका रजिस्ट्रेशन जब केंद्र सरकार ने आयुर्वेद पर ड्रग एक्ट लागू किया इसके पश्चात लाइसेंस हेतु संस्था ने आवेदन किया, विभिन्न क्लिनीकली परीक्षणो के उपरांत नेत्र रोगों पर प्रभावी गुणवात्ता के कारण 1986 में ड्रग लाइसेंस A1261/86 आयुर्वेदिक यूनानी निर्देशालय लखनऊ ने औषधि निर्माण लाइसेंस जारी किया।

Established:

1947

Drug License:

A1261/86

Tested By:

Ayurvedic College, Varanasi

Tested By:

Ayurvedic College, Handia, Allahabad

सम्पूर्ण जानकारी

Our Portfolio

सांख्य शास्त्र के सत्कार्य कारण वाद के सिद्धान्त का अनुकरण कर जिस कारण में उस कार्य विशेष को उत्पन्न करने की क्षमता है, वही उसे उत्पन्न कर सकता है, अन्य शक्ति समर्थ या शक्त कारण में ही रहता है, जिसमें कार्य विद्यमान रहता है, इसलिए कारण शक्ति से कार्य की प्रवृति होती है ।

नेत्र वायव्य पदार्थ है इसकी वृत्ति तैजस है हमारी संस्था भीमसेनी कार्यालय में निर्मित नेत्र औषिधि “भीमसेनी आजन” सांख्यशास्त्र के २५ तत्वों का संघात है। जिसमें १७ केवल कार्यतत्व ७ कार्यकारण तत्व एक त्रिगुणातीत (उदासीन) तत्व का संयोजन है।

सांख्य शास्त्र में अशक्ति के २८ भेद में अन्धत्व रोग भी है जो, नेत्र (ज्ञानेन्द्रिय) के विकल होने से अपने विषय (देखने) का ग्रहण नही हो सकता है यही अशक्ति है। नेत्रों की अव्यक्त प्रकृति निरन्तर परिवर्तनशील या क्रियाशील बनी रहती है इनके त्रिदोषों की साम्य स्थिति बनाये रखने हेतु भीमसेनी ऑजन का प्रयोग होने से नेत्र एकान्तिक व आत्यान्तिक दुखों से मुक्त रहता है ।

सांख्य शास्त्र के सत्कार्य कारण वाद के अनुसरण के कारण यह आँखों के लिए अर्न्तराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता एवं प्रभाव रखता है ।

अन्य दृश्योपायों (अतिशी शीशा चश्मा, लेंस) से दुःखोंच्छेद अवश्य होता ही है, यह नियम न होने तथा होने पर भी, फिर दुःख पैदा होते है, इस कारण अन्य दृश्योपायों अथवा शास्त्रोक्त उपायों से भिन्न सांख्यशास्त्र मात्र से होने वाला तत्व ज्ञान रूप अलौकिक विज्ञान से ही एकान्तिक तथा आत्यन्तिक दुःख का उच्छेद हो सकता है।

भीमसेनी कार्यालय की स्थापना १९४७ में देश की जनता की आँखों की पूरी देखभाल एवं नेत्र रोगों से उत्पन्न अन्धता से मुक्ति हेतु हुई, उसके पहले कई वर्षों तक तत्कालीन समय के जाने व्याकरणाचार्य स्व० पं० सत्यनारायण शास्त्रीजी, अनके आयुर्वेदिक गुरू स्व० वैद्य धर्मदासजी, मूर्धन्य भैषज कल्पक स्व० पं० कलाधर प्रसाद जी एवं आयुर्वेद चक्रवर्ती स्व० ताराशंकर मिश्र आयुर्वेद विशेषज्ञों के निर्देशन में नेत्रों के भौतिक संगट्ठन (दोष, धातु, एवं मल) एवं उनकी तन्मात्राओं का गहन छानबीन व नेत्र रोगों पर प्रयोगों के आधार पर हमारी संस्था ने निर्माण तकनीकी ज्ञान का अर्जन किया ।

भीमसेनी ऑजन प्राचीन भारतीय चिकित्सा के सार्वभौमिक एवं सार्वेकालिक वैदिक चिकित्सा त्रिदोष, पंच महाभूत उनकी तन्मात्राओं के विज्ञान पर २५ तत्वों से निर्मित एवं विकसित है, व आयुर्वेद के मौलिक सिद्धान्त पर कार्य कर है ।

देश में नेत्र रोगों से उत्पन्न अन्धता स्वतन्त्रता के ६२ वर्षों का सामाजिक विकास (सेन्स आफ सोसायटी का बनाना) एवं सिर्फ एलोपैथिक के पीछे अन्धी दौड़ का कवि है जो आज देश में एक गम्भीर राष्ट्रीय समस्या बन गयी है । पिछले ६२ वषों से पश्चात्य पैथी के नेत्र चिकित्सकों एवं विशेषज्ञों ने पूरे देश में सुनियोजित ढंग से एवं सेन्स आफ सोसायटी पैदा किया कि आयुर्वेदिक नेत्र औषधि (अंजन) इत्यादि के प्रयोग से कुछ नही होता, बल्कि इनके प्रयोग से हानि होती है । तथाकथित नेत्र विशेषज्ञों ने पिछले ६२ वषों में भारतीय चिकित्सा विज्ञान की घोर उपेक्षा एवं इसके प्रति दुष्प्रचार करके पूरे देश को नेत्र आपरेशन शिविर में बदलने का उपक्रम किया है जो उचित नहीं है ।

क्या देश में अन्धत्व रोग, डा० हार्डिया के ५ लाखवें आपरेशन कर गिनीज बुक नाम लिखने से या चश्मा हटाकर लेंस प्रतिरोपण से रूक जायेगा? यह देश एवं जनता को गुमराह करने की बहुत ही घटिया चाल है इस तरह के कार्यो से जनता का पूर्ण रूप से भला नहीं होने वाला है । इसके कारण पर प्रहार करना होगा इसके लिए भारत सरकार को अपनी राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति को विकसित एवं प्रचारित करना ही होगा ।

एलोपैथी के नेत्र चिकित्सक एवं विशेषज्ञ पूरे देश में नेत्ररोगों से उत्पन्न अन्धता के रोगियों को धीरे धीरे अन्धा होने की त्रासद स्थिति में छोड़ देते है कि जब आप अन्धे होगें तो आपरेशन होगा, इसके पास सिवाय चश्मा और आपरेशन छोड़ अन्य कोई औषधि नहीं जिसके प्रयोग से नेत्र रोगों से उत्पन्न अन्धता को रोका जा सकें । आधुनिक नेत्र चिकित्सकों एवं विशेषज्ञों के ३५ वें राज्य सम्मेलन में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष श्री रमेशचन्द्रा ने कहा कि अर्से से चल रहे अन्धत्व निवारण के राष्ट्रीय कार्यक्रम के रहते हुए अन्धेपन के रोगियों की संख्या क्यों बेहिसाब बढ़ चली जा रही है। इस बात पर गम्भीरता से मंथन करें कि कमी कहाँ है। जो कि आधुनिक नेत्र चिकित्सा पद्धति की असफलता एवं असमर्थता को स्पष्ट रूप से रेखांकित कर रही है । २१वीं शताब्दी में जब हमारा देश आज विश्व की वर्तमान परिस्थितियों में अपने स्व से संघर्ष करते हुए नजर आ रहा है, आवश्यकता इस बात की है कि वर्तमान राष्ट्रीय स्वास्थ चुनौतियों का हम स्वदेशी समाधान प्रस्तुत करें निश्चित रूप से वह स्वदेशी समाधान, प्राचीन, मनीषियों की वाणी भारतीय दर्शन, वेद, उपवेद, श्रुतियों एवं सहिताओं से ही प्राप्त हो सकता हैं। काल खण्ड के अनुसार मानव विकास की प्रक्रियाओं का अध्ययन हमारे पूर्वजों ने किया था, तो निःसन्देह उस प्रक्रिया में पीढ़ियों का अनुभव समाहित रहा है ।

वर्तमान समय में देश अपनी दशा से भटक गया है। प्राचीन अनुभव सिद्ध शोधों को हमने तिजोरी में बन्द कर दिया है ।

नवीन मार्ग का सर्वथा अनुसरण करना, बिना प्राचीन की सम्यक दृष्टि रखे सम्भव नहीं है अतः प्रचीन शोधों की अर्वाचीन दृष्टि में वैज्ञानिक अनुसंधान आवश्यकता है । आज पश्चिमी प्रचार की ऑधी ने उनके महत्वपूर्ण योगदान को भी पूरी तरह ढक दिया ।

वर्तमान समय में जैसा कि आपको भी विदित होगा कि भारत सहित विश्व के तमाम देशों के शोध संस्थान इस मोतयाबिन्द से बचाव के उपाय ढूढ़ने में लगें है । यह सच है कि मोतियाबिन्द के इलाज के लिए कई बेहतर तकनीक विकसित हुई है और भविष्य में और अधिक कारगर तकनीकी आने की उम्मीद है इस पर भी विशेषज्ञों का बहुमत है कि आपरेशन के बजाए बचाव पक्ष पर पर्याप्त शोध अनुसंधान से मानव समाज को अपेक्षित लाभ पहुँचाया जा सकता है। भारत में मोतियाबिन्द के कारणों की खोज अनुसंधान संस्थान एल.बी०. प्रसाद आई इन्सटीयूट बंजारा हिल्स में किया जा रहा है पिछले १५वषों के शोध का परिणाम केवल सूर्य को एक प्रमुख कारण मान रहे जिससे कि लेन्स के प्रोटीनों के क्षय होने की प्रक्रिया आरम्भ होती है जो नही रूकती है ।

दुनियाभर के अनुसन्धान संस्थानों का मानना है कि शरीर में ही पैदा होने वाले फ्री रेडिकल तत्व लेंस के विखण्डन के लिए जिम्मेदार है, सूर्य की पराबैगनी किरणों का प्रभाव इस प्रक्रिया में तेजी लाती है ।

भारतीय वैदिक चिकित्सा विज्ञान आकाश आदि पंच तन्मात्राओं, मन अहंकार तत्वों सहित सात कारणों को नेत्रों की प्रकृति को विकृत करने वाला मानता है । यह सृष्टि का विज्ञान है, सृष्टि क्षय होने पर यह सृष्टि का कार्य करता है । भारत जैसे विशाल देश में आबादी बढ़ेगी, बच्चे जवान, जवान बूढे होगें और नेत्र रोगों से उत्पन्न अन्धता और बढ़ेगी यही क्रम चलता रहेगा।

सारे सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों से प्रतिवर्ष (४०लाख से ५०लाख) आपरेशनों के बाद भी २०१० तक इनकी संख्या करोडों में पहुच जायेगी इसमें दो राय नहीं है । यह क्रम लगा रहेगा ।

इस तरह देश में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के प्रतिवर्ष करोडों (अब तक अरबों रूपया) खर्च करने के बाद भी इनका आखों की देखभाल एवं नेत्र रोगों से उत्पन्न अन्धरता निवारण का राष्ट्रीय कार्यक्रम सिर के बल खड़ा है और आगे भी खड़ा रहेगा।

एक मोटे आकड़े के अनुसार देश में प्रतिवर्ष सरकारी गैर सरकारी संगठनों के सैकड़ों करोड़ के बाद जनता का प्रतिवर्ष २५ हजार करोड़ रूपये अन्धत्व रोग पर खर्च होता है। इसके बदले में मिलता है अन्धत्व रोग धीरे धीरे अन्धा होकर त्रासद स्थिति में 'पहुच कर बूढी आँखों का आपरेशन ही एक रास्ता बचता है, इसमें भी सभी आपरेशन सफल भी नही होते । प्रतिवर्ष हजारो व्यक्तियों की आखें हमेशा के लिए चौपट हो जाती है ।

भारती स्वतंत्रता के स्वर्ण जयन्ती वर्ष के बाद भी देश में किसी भी चिकित्सा संस्थान ने, न तो भारतीय चिकित्सा विज्ञान में न तों, आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में (सरकारी गैर सरकारी) नेत्र रोगों से उत्पन्न अन्धत्व पर कोई भी शोध पत्र प्रस्तुत नही किया है, न आयुर्वेद क्षेत्र, न आधुनिक चिकित्सा क्षेत्र के स्थपित चिकित्साविदों, निर्माण संस्थानों, जनसंचार माध्यमों से इस सम्बन्ध में किसी अधिकारिक नेत्र औषधि के प्रयोग की बात सामने आयी क्योंकि वे संस्थान किसी ऐसे प्रभावशाली हानि रहित नेत्र औषधि को विकसित करने में असफल रहे जो आँखों की पूरी देखभाल के साथ साथ नेत्र रोगों से उत्पन्न अन्धता का सक्षम रूप से रोकथाम कर सकें।

५० वर्षो बाद इस चिकित्सा विज्ञान की द्धितीय गोष्ठी का आयोजन काशी हिन्दु विश्वविद्यालय में किया गया, तत्कालीन चिकित्सा संस्था के निदेशक डा० एस०एस० तुली ने कहॉ कि:

"त्रिदोष मनुष्य के जन्म से मृत्यु तक स्वस्थ रहने का अदभुत दशर्न लेकिन हमें अपनी महान विरासत को सम्पूर्ण जगत के सम्मुख प्रस्तुत करना है जिससे कि सम्पूर्ण मानवता लाभान्वित हो सके।"

सबसे हास्यापद बात है कि जिस एलोपैथी पद्धति में अन्धत्व रोग की रोकथाम की कोई दवा नहीं है बल्कि इनकी नेत्र औषधियों के अधिक प्रयोग से देश में अन्धत्व रोग और गति पकड़ रहा है वह देश में आँखों की देखभाल नेत्र रोगो से अन्धता निवारण का कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर पर चला रहे है।

देश में सबसे ज्यादा चौकाने वाले तथ्य है कि एलोपैथी अन्धाधुन्ध इस्तेमाल एवं स्टाईड युक्त नेत्र औषधियों के अधिक प्रयोग से जितने देश में अन्धे हो रहे है, उससे कुछ ही ज्यादा नेत्र रोगों से उत्पन्न अन्धता से हो रहे है।

केन्द्र एवं राज्य सरकार के स्वास्थय मंत्रालयों के अदूरदर्शी एवं गलत नितियों, भ्रष्ट नौकरशाहों तथा कथित नेत्र विशेषज्ञों के कारण पिछले ५४ वर्षो में, अरबों रूपये हजम करने के बाद भी देश में आँखों की पूरी देखभाल नेत्ररोगों से उत्पन्न अन्धता निवारण का राष्ट्रीय कार्यक्रम पूरी तरह विफल रहा, एवं यह एक गम्भीर राष्ट्रीय समस्या बन गयी है। अब तक खर्च हुए का १ प्रतिशत भी भारतीय वैदिक नेत्र चिकित्सा पद्धति को विकसित करने में किया जाए तो देश इस राष्ट्रीय चुनौती का सामना सक्षम रूप से कर सकता है ।

ऐसे विकट स्थिति में हमारा विरोध आधुनिक चिकित्सा पद्धति से नहीं, उनकी अपने जगह पर्याप्त महान महत्ता है।

किन्तु आपरेशन से बेहतर दृष्टि शक्ति का बचाव है । देश के सरकारी गैर सरकारी नेत्र विशेषज्ञों एवं भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के विशेषज्ञों से अनुरोध है कि इस सम्बन्ध में सच्चाई को स्वीकार कर वैदिक नेत्र चिकित्सा विज्ञान के बारे में: देश में एक सेन्स आफ सोसायटी का निर्माण करे जिससे कि देश इस राष्ट्रीय चुनौती का मुकाबला कर सकें |

भारत एक उष्णकटवन्धीय देश है जहाँ कैटरेक्ट एक आम बीमारी रही है प्राचीनकाल से ही भारतीय चिकित्सा शास्त्रियों, तत्व ज्ञानी ऋषियों ने देश में अंजन की संस्कृति एवं जीवन पद्धति बनाया, प्राचीनकाल से ही नेत्र रोग से उत्पन्न अन्धा से मुक्ति हेतु राष्ट्रीय स्तर पर आयुर्वेदिक ऑजन का प्रयोग व्यापक स्तर पर होता रहा जिससे कि अन्धत्व रोग नियन्त्रण में था ।

दासता के चंगुल से देश थोड़े ही दिन आजाद हुआ है, प्रचीन व्यवस्था एवं मान्यताएँ जो कुछ बची थी वह भी स्वतन्त्रा के नव उत्साह में छिन्न-भिन्न कर दी गयी है। भारत का इतिहास कोई दो हजार साल पुराना नही है, पश्चिमी समाज जब सभ्यता के मायने तक नहीं जानता था उसने खाने पीने, पहनने जीवन जीने की तहजीव तक नहीं सीखी थी तो उससे भी हजारोंवर्ष पहले अपनी सभ्यता के परचम लहरा रहा था।

महामुनि कपिल, आसुरि, सुश्रत् चरक, अश्वनी कुमार जैसे चिकित्सा वैज्ञानिको के चमत्कृत कर देने वाली आश्चर्यजनक खोजों, अनुसंधानों को समृद्ध धाती के बावजूद दुर्भाग्य है कि हमने अपनी बिरासत विसरा दी है।

अब समय आ गया है कि नेत्र औषिधि भीमसेनी ऑजन वैदिक विज्ञान, त्रिदोष चिकित्सा की वैज्ञानिकता पुर्नमूल्यांकन समीक्षा व परीक्षण आज के विज्ञान द्वारा किया जाए कि इसे चतुर्दिक मान्यता प्राप्त हो व राष्ट्रीय स्तर दर देश में अन्धत्व रोग कीराष्ट्रीय चुनौती का सामना वास्तविक परिणाम मूलक एवं विवेक पूर्ण ढ़गं से करने में देश सक्षम हो सकें ।

देश में अन्धत्व रोग की अधिकता है लेकिन सरकार की इस पर नियन्त्रण हेतु कोई भी राष्ट्रीय औषधि नीति नहीं होने से नेत्र रोग चिकित्सा क्षेत्र में अराजकता व्याप्त है। अभी हाल तक एक चिकित्सा पद्धति की बहुराष्ट्रीय कम्पनी प्रचार के बल पर सारे देश में अन्धत्वरोग की औषधि का विपणन किया लाखों व्यक्ति के आंखों पर दुःप्रभाव के बाद अब अल्कोहल रहित औषधि दे रहा है। कमोवेश हर पद्धति की छोटी बड़ी कम्पनियाँ नेत्रों की प्रकृति को विकृत कर देश में अन्धत्व रोग की गति प्रदान कर रही है ।

भीमसेनी ऑजन देश के आयुर्वेद जगत को भीमसेनी कार्यालय की महान देन है, जबकि दूसरी अन्य औषधियाँ नेत्रों पर कार्य नही करती तो भीम सेनी ऑजन आंखों की जाती रोशनी को बचा सकती है। व्यक्ति मृत्यु पर्यन्त देख सकता है।

हमारी संस्था को राष्ट्रीय स्तर पर विकसित कर देश में नेत्र रोगों से उत्पन्न अन्धता पर प्रभावी नियन्त्रण किया जा सकता है एवं देश नेत्ररोग चिकित्सा में स्वावलम्बी बन सकता है एवं उससे देश को विदेशी मुद्रा की प्राप्ति भी हो सकती है। पूरे विश्व में ऐसा चाक्षुप्य रसायन योग भीमसेनी ऑजन का निर्माण दिवोदास धतवन्तरी की आयुर्वेद नगरी काशी में ही सम्भव था ।

अगर हमारी संस्था को पर्याप्त आर्थिक अनुदान सरकारी या गैरसरकारी मिले तो संस्था देश में चल रहें आंखों की पूरी देखभाल एवं नेत्ररोगों से उत्पन्न अन्धता के राष्ट्रीय कार्यक्रम को पैरो बल खड़ा करने में पूरा सहयोग को तत्पर रहेगा साथ-साथ देश एवं पूरे विश्व के नेत्र व्याधिग्रस्त मानवता का भला होगा | भारत जैसे विशाल देश में कुपोषण जनित अन्धता रोकने हेतु इस सम्बंध में देश की जनता को खान-पान में जागरूक बनाकर एवं नेत्र रोगों से उत्पन्न अन्धता हेतु वैदिक नेत्र चिकित्सा पद्धति व्यापक रूप से जनता में प्रचारित कर अन्धत्व की दर में ७० से ८० प्रतिशत की कमी लायी जा सकती है।

देश में अन्धत्व रोग की विश्वसनीय प्रभावी औषधि के अभाव में अन्धत्व रोग बढ़ रहा है जब तक वैदिक नेत्र चिकित्सा पद्धति नही अपनायी जायेगी अन्धत्व रोग की रोक-थाम कथाकथित नेत्र विशेषज्ञों के लिए दिवास्वप्न ही रहेगा ।

भीमसेनी ऑजन २१वीं शताब्दी में नेत्रों के लिए राष्ट्रीय औषधि घोषित होने की गुणवत्ता से युक्त है ।

देश का वैदिक चिकित्सा विज्ञान अविनश्वर है यह देश की राष्ट्रीय धरोहर है। इसको संरक्षण प्रदान करना सरकार का नैतिक दायित्व भी है ।